ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ
ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ
मैं तो अपना भी न था कैसे तुम्हारा हुआ हूँ
(813) Peoples Rate This
ज़ख़्म गिनता हूँ शब-ए-हिज्र में और सोचता हूँ
मैं तो अपना भी न था कैसे तुम्हारा हुआ हूँ
(813) Peoples Rate This