Love Poetry of Ahmad Faraz
नाम | अहमद फ़राज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Faraz |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2008 |
ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
ज़िंदगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरह
ज़िंदगी पर इस से बढ़ कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़'
यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
ये किन नज़रों से तू ने आज देखा
वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है
उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहाँ से आई है
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी
तअ'ना-ए-नश्शा न दो सब को कि कुछ सोख़्ता-जाँ
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
रात भर हँसते हुए तारों ने