सफ़ेद छड़ियाँ
जनम का अंधा
जो सोच और सच के रास्तों पर
कभी कभी कोई ख़्वाब देखे
तो ख़्वाब में भी
अज़ाब देखे
ये शाहराह-ए-हयात जिस पर
हज़ार-हा क़ाफ़िले रवाँ हैं
सभी की आँखें
हर एक का दिल
सभी के रस्ते
सभी की मंज़िल
इसी हुजूम-ए-कशाँ-कशाँ में
तमाम चेहरों की दास्ताँ में
न नाम मेरा
न ज़ात मेरी
मिरा क़बीला
सफ़ेद छड़ियाँ
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