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मयूरका - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

मयूरका

मयूरका के साहिलों पे किस क़दर गुलाब थे

कि ख़ुशबुएँ थी बे-तरह कि रंग बे-हिसाब थे

तुनुक-लिबासियाँ शनावरों की थीं क़यामतें

तमाम सीम-तन शरीक-ए-जश्न-ए-शहर-ए-आब थे

शुआ-ए-महर की ज़िया से थे जिगर जिगर बदन

क़मर-जमाल जिन के अक्स-ए-रौशनी के बाब थे

खुली फ़ज़ा की धूप वो कि जिस्म साँवले करे

बुतान-ए-आज़री कि मस्त-ए-ग़ुस्ल-ए-आफ़्ताब थे

यहीं पता चला कि ज़ीस्त हुस्न है बहार है

यहीं ख़बर हुई कि ज़िंदगी के दुख सराब थे

यहीं लगा कि गर्दिशों के ज़ाविए बदल गए

न रोज़ ओ शब की तल्ख़ियाँ न वक़्त के अज़ाब थे

मिरे तमाम दोस्त अजनबी रफ़ाक़तों में गुम

मिरी नज़र में तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल तेरे ख़्वाब थे

मैं दूरियों के बावजूद तेरे आस पास था

मयूरका के साहिलों पे मैं बहुत उदास था

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Mayurka In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Mayurka is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Mayurka in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Mayurka Poem for Youth in PDF. Mayurka is a Poem on Inspiration for young students. Share Mayurka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.