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उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है

उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है

यूँ तो कहने को सभी कहते हैं यूँ है यूँ है

जैसे कोई दर-ए-दिल पर हो सितादा कब से

एक साया न दरूँ है न बरूँ है यूँ है

तुम ने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफ़ा की तस्वीर

नोक-ए-हर-ख़ार पे इक क़तरा-ए-ख़ूँ है यूँ है

तुम मोहब्बत में कहाँ सूद-ओ-ज़ियाँ ले आए

इश्क़ का नाम ख़िरद है न जुनूँ है यूँ है

अब तुम आए हो मिरी जान तमाशा करने

अब तो दरिया में तलातुम न सुकूँ है यूँ है

नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है

रोज़ आ जाता है समझाता है यूँ है यूँ है

शाइ'री ताज़ा ज़मानों की है मे'मार 'फ़राज़'

ये भी इक सिलसिला-ए-कुन-फ़यकूँ है यूँ है

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