Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_62d4553009fc215fc1337ffb81aa67de, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा

क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा

जैसा भी तू था उस से तो बढ़ कर नहीं कहा

उस से मिले तो ज़ोम-ए-तकल्लुम के बावजूद

जो सोच कर गए वही अक्सर नहीं कहा

इतनी मुरव्वतें तो कहाँ दुश्मनों में थीं

यारों ने जो कहा मिरे मुँह पर नहीं कहा

मुझ सा गुनाहगार सर-ए-दार कह गया

वाइज़ ने जो सुख़न सर-ए-मिंबर नहीं कहा

बरहम बस इस ख़ता पे अमीरान-ए-शहर हैं

इन जौहड़ों को मैं ने समुंदर नहीं कहा

ये लोग मेरी फ़र्द-ए-अमल देखते हैं क्यूँ

मैं ने 'फ़राज़' ख़ुद को पयम्बर नहीं कहा

(3068) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha Poem for Youth in PDF. Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha is a Poem on Inspiration for young students. Share Qamat Ko Tere Sarw Sanobar Nahin Kaha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.