Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_35b4895e245be870994ce12abedcbffd, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे

न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे

तो कर गए कूच मेरी आँखों से ख़्वाब सारे

बयाज़-ए-दिल पर ग़ज़ल की सूरत रक़म किए हैं

तिरे करम भी तिरे सितम भी हिसाब सारे

बहार आई है तुम भी आओ इधर से गुज़रो

कि देखना चाहते हैं तुम को गुलाब सारे

ये सानेहा है कि वाइ'ज़ों से उलझ पड़े हम

ये वाक़िआ' है कि पी रहे थे शराब सारे

भला हुआ हम गुनाहगारों ने ज़िद नहीं की

समेट कर ले गया है नासेह सवाब सारे

'फ़राज़' किस ने मिरे मुक़द्दर में लिख दिए हैं

बस एक दरिया की दोस्ती में सराब सारे

(2671) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare Poem for Youth in PDF. Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare is a Poem on Inspiration for young students. Share Na Sah Saka Jab Masafaton Ke Azab Sare with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.