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मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

जब अपने तौर यही थे तो क्या गिला उस का

वो अपने ज़ोम में था बे-ख़बर रहा मुझ से

उसे गुमाँ भी नहीं मैं नहीं रहा उस का

वो बर्क़-रौ था मगर वो गया कहाँ जाने

अब इंतिज़ार करेंगे शिकस्ता-पा उस का

चलो ये सैल-ए-बला-ख़ेज़ ही बने अपना

सफ़ीना उस का ख़ुदा उस का नाख़ुदा उस का

ये अहल-ए-दर्द भी किस की दुहाई देते हैं

वो चुप भी हो तो ज़माना है हम-नवा उस का

हमीं ने तर्क-ए-तअल्लुक़ में पहल की कि 'फ़राज़'

वो चाहता था मगर हौसला न था उस का

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