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किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला

किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला

अब के मौसम में भी आलम वही हू का निकला

दस्त-ए-क़ातिल से कुछ उम्मीद-ए-शफ़ा थी लेकिन

नोक-ए-ख़ंजर से भी काँटा न गुलू का निकला

इश्क़ इल्ज़ाम लगाता था हवस पर क्या क्या

ये मुनाफ़िक़ भी तिरे वस्ल का भूका निकला

जी नहीं चाहता मय-ख़ाने को जाएँ जब से

शैख़ भी बज़्म-नशीं अहल-ए-सुबू का निकला

दिल को हम छोड़ के दुनिया की तरफ़ आए थे

ये शबिस्ताँ भी इसी ग़ालिया-मू का निकला

हम अबस सोज़न-ओ-रिश्ता लिए गलियों में फिरे

किसी दिल में न कोई काम रफ़ू का निकला

यार-ए-बे-फ़ैज़ से क्यूँ हम को तवक़्क़ो' थी 'फ़राज़'

जो न अपना न हमारा न अदू का निकला

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Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla Poem for Youth in PDF. Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla is a Poem on Inspiration for young students. Share Kisi Jaanib Se Bhi Parcham Na Lahu Ka Nikla with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.