जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
हवा चली है तो झोंके उदास करने लगे
गई रुतों का तअल्लुक़ भी जान-लेवा था
बहुत से फूल नए मौसमों में मरने लगे
वो मुद्दतों की जुदाई के बाद हम से मिला
तो इस तरह से कि अब हम गुरेज़ करने लगे
ग़ज़ल में जैसे तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल बोल उठें
कि जिस तरह तिरी तस्वीर बात करने लगे
बहुत दिनों से वो गम्भीर ख़ामुशी है 'फ़राज़'
कि लोग अपने ख़यालों से आप डरने लगे
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