Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_55da1ceafa8ee4e55e86b7fb4b62bb8a, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो

ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है

ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो

इस दीद की साअत में कई रंग हैं लर्ज़ां

मैं हूँ कि कोई और है दुनिया है कि तुम हो

देखो ये किसी और की आँखें हैं कि मेरी

देखूँ ये किसी और का चेहरा है कि तुम हो

ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ कहीं ठहरे तो ये जानूँ

हर साँस में मुझ को यही लगता है कि तुम हो

हर बज़्म में मौज़ू-ए-सुख़न दिल-ज़दगाँ का

अब कौन है शीरीं है कि लैला है कि तुम हो

इक दर्द का फैला हुआ सहरा है कि मैं हूँ

इक मौज में आया हुआ दरिया है कि तुम हो

वो वक़्त न आए कि दिल-ए-ज़ार भी सोचे

इस शहर में तन्हा कोई हम सा है कि तुम हो

आबाद हम आशुफ़्ता-सरों से नहीं मक़्तल

ये रस्म अभी शहर में ज़िंदा है कि तुम हो

ऐ जान-ए-'फ़राज़' इतनी भी तौफ़ीक़ किसे थी

हम को ग़म-ए-हस्ती भी गवारा है कि तुम हो

(8530) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho Poem for Youth in PDF. Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho is a Poem on Inspiration for young students. Share Jis Samt Bhi Dekhun Nazar Aata Hai Ki Tum Ho with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.