Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b5b93d9b863cad672501b451c7a06df7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की

वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में

या तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की

तज दिया था कल जिन को हम ने तेरी चाहत में

आज उन से मजबूरन ताज़ा आश्नाई की

हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने से

तू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की

तर्क कर चुके क़ासिद कू-ए-ना-मुरादाँ को

कौन अब ख़बर लावे शहर-ए-आश्नाई की

तंज़ ओ ता'ना ओ तोहमत सब हुनर हैं नासेह के

आप से कोई पूछे हम ने क्या बुराई की

फिर क़फ़स में शोर उट्ठा क़ैदियों का और सय्याद

देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की

दुख हुआ जब उस दर पर कल 'फ़राज़' को देखा

लाख ऐब थे उस में ख़ू न थी गदाई की

(3478) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki Poem for Youth in PDF. Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki is a Poem on Inspiration for young students. Share Is Qadar Musalsal Thin Shiddaten Judai Ki with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.