Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_da70825e2fd57b704e21326e4faf105b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया - अहमद फ़राज़ कविता - Darsaal

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

चराग़ को जो बचाते थे उन का घर भी गया

पुकारते रहे महफ़ूज़ कश्तियों वाले

मैं डूबता हुआ दरिया के पार उतर भी गया

अब एहतियात की दीवार क्या उठाते हो

जो चोर दिल में छुपा था वो काम कर भी गया

मैं चुप रहा कि इसी में थी आफ़ियत जाँ की

कोई तो मेरी तरह था जो दार पर भी गया

सुलगते सोचते वीरान मौसमों की तरह

कड़ा था अहद-ए-जवानी मगर गुज़र भी गया

जिसे भुला न सका उस को याद क्या रखता

जो नाम लब पे रहा ज़ेहन से उतर भी गया

फटी फटी हुई आँखों से यूँ न देख मुझे

तुझे तलाश है जिस शख़्स की वो मर भी गया

मगर फ़लक को अदावत उसी के घर से थी

जहाँ 'फ़राज़' न था सैल-ए-ग़म उधर भी गया

(2540) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya In Hindi By Famous Poet Ahmad Faraz. Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya is written by Ahmad Faraz. Complete Poem Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya in Hindi by Ahmad Faraz. Download free Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya Poem for Youth in PDF. Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Hawa Ke Zor Se Pindar-e-baam-o-dar Bhi Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.