Ghazals of Ahmad Faraz
नाम | अहमद फ़राज़ |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Faraz |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2008 |
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ
यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा
ये तबीअत है तो ख़ुद आज़ार बन जाएँगे हम
ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं
ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा
ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी
ये बे-दिली है तो कश्ती से यार क्या उतरें
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
वो दुश्मन-ए-जाँ जान से प्यारा भी कभी था
वहशतें बढ़ती गईं हिज्र के आज़ार के साथ
वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबला-पाई ले ले
वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ
उस मंज़र-ए-सादा में कई जाल बंधे थे
उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही
था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी
तेरी बातें ही सुनाने आए
तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सुकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ
सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते