Friendship Poetry of Ahmad Faraz
नाम | अहमद फ़राज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Faraz |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2008 |
याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त
तेरी बातें ही सुनाने आए
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
हमें भी अर्ज़-ए-तमन्ना का ढब नहीं आता
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
ब-ज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़-ए-यार मगर
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर
तख़्लीक़
नामा-ए-जानाँ
मुहासरा
मयूरका
मैं और तू
ख़्वाबों के ब्योपारी
कर गए कूच कहाँ
काली दीवार
इंतिसाब
दोस्ती का हाथ
भली सी एक शक्ल थी
ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ
ऐ मेरे सारे लोगो
अभी हम ख़ूबसूरत हैं