अहमद फ़राज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद फ़राज़ (page 10)
नाम | अहमद फ़राज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Faraz |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2008 |
कहा था किस ने कि अहद-ए-वफ़ा करो उस से
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
जो भी दरून-ए-दिल है वो बाहर न आएगा
जिस्म शो'ला है जभी जामा-ए-सादा पहना
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था
जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है
जब तिरी याद के जुगनू चमके
जब हर इक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए
जब भी दिल खोल के रोए होंगे
जान से इश्क़ और जहाँ से गुरेज़
इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
हम तो ख़ुश थे कि चलो दिल का जुनूँ कुछ कम है
हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया
हर कोई तुर्रा-ए-पेचाक पहन कर निकला
हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे
हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे
हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो
गुमाँ यही है कि दिल ख़ुद उधर को जाता है
गुफ़्तुगू अच्छी लगी ज़ौक़-ए-नज़र अच्छा लगा
गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए
ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं
ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी