उन से भी पूछिए कभी अपनी ज़मीं का कर्ब
जो साहिलों को छोड़ के दरिया में आ गए
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सड़क के पार चला जा रहा है बचता हुआ
इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक
सब मोजज़ों के बाब में ये मोजज़ा भी हो
दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया
ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है
आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया
तू ने भी सारे ज़ख़्म किसी तौर सह लिए
बाज़ार-ए-आरज़ू में कटी जा रही है उम्र
किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए
अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
मैं तो सोया भी न था क्यूँ ये दर-ए-ख़्वाब गिरा