सड़क के पार चला जा रहा है बचता हुआ
किसी का हाथ कोई मेहरबान थामे हुए
Wasi Shah
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Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया
इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक
किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए
ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए
आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया
तू ने भी सारे ज़ख़्म किसी तौर सह लिए
ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है
ऐ शाम-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही दे
सब मोजज़ों के बाब में ये मोजज़ा भी हो
दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया