ऐ शाम-ए-हिज्र-ए-यार मिरी तू गवाही दे
मैं तेरे साथ साथ रहा घर नहीं गया
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(825) Peoples Rate This
आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया
सब मोजज़ों के बाब में ये मोजज़ा भी हो
फ़ित्ना उठा तो रज़्म-गह-ए-ख़ाक से उठा
ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए
इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक
इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया
बाज़ार-ए-आरज़ू में कटी जा रही है उम्र
अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए
धुँद में खो के रह गईं सूरतें मेहर-ओ-माह सी