वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
जैसा कोई छोड़ कर गया था
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कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
इक अश्क बहा होगा
हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
फिर कोई दूर हुआ जाता है
हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं