उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
आग का मस तबाह-कुन राग का रस तबाह-कुन
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हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
इक रात मैं सो नहीं सका था
हम बहकते हुए आते हैं तिरे दरवाज़े
ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है
ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
इक अश्क बहा होगा
हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ