ताबीर बताई जा चुकी है
अब आँख को ख़्वाब देखना है
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ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से
मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं
हम आज हँसते हुए कुछ अलग दिखाई दिए
इक रात मैं सो नहीं सका था
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'