ना-रसाई ने अजब तौर सिखाए हैं 'अता'
यानी भूले भी नहीं तुम को पुकारा भी नहीं
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मैं तेरी रूह में उतरा हुआ मिलूँगा तुझे
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में
हम ने अव्वल तो कभी उस को पुकारा ही नहीं
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
हमारी उम्र से बढ़ कर ये बोझ डाला गया
वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
कोई ऐसा तो तिरे ब'अद नहीं रहना था
मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
उस का बदन है राग सा राग भी एक आग सा
ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ