आज देखा है उसे ऐसी मोहब्बत से 'अता'
वो यही भूल गया उस को कहीं जाना था
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ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ
कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ
हम आस्तान-ए-ख़ुदा-ए-सुख़न पे बैठे थे
मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की
किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम
ये तिरा हिज्र अता दर्द अता कर्ब अता
ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे
बेबसी ऐसी भी होती है भला
हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं
इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता
फिर कोई दूर हुआ जाता है
हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं