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कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ - अहमद अता कविता - Darsaal

कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

मैं ढूँढता हूँ कि मैं कहीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

कहीं सितारे कहीं हैं जुगनू कहीं अँधेरे

मैं आसमाँ हूँ कोई ज़मीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

मैं एक दिल हूँ किसी के दिल में कि वाहिमा हूँ

कोई मकाँ हूँ कोई मकीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

दिखाई देता था जा-ब-जा दिल के हाशिए में

वहाँ नहीं हूँ तो दिल-नशीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

मिरी कमाई थे यार मेरे कहाँ गए हैं

जो सोचता हूँ ग़लत नहीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

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