कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
कल ख़्वाब में इक परी मिली थी
इक बोसे के ब'अद उड़ गई थी
मैं उस के लिए धनक बना था
वो और ही रंग ढूँढती थी
देवी थी जिसे मैं पूजता था
वो और किसी को सोचती थी
मैं राह-ए-गुनाह पर चला था
इस राह में कैसी तीरगी थी
छे रास्ते वाँ निकल रहे थे
इक सम्त ज़रा सी रौशनी थी
आख़िर मैं दुआ में ढल चुका था
दुनिया मुझे आ के देखती थी
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