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इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता - अहमद अता कविता - Darsaal

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

नक़्श-ए-यक-ख़्वाब मिटाया भी नहीं जा सकता

हम उसे देख के नज़रें भी हटा सकते नहीं

और उसे देखने जाया भी नहीं जा सकता

वो कहीं ख़्वाब में पोशीदा कोई ख़्वाब सही

देर तक दर्द दबाया भी नहीं जा सकता

ज़ेर-ए-लब हैं जो सदाएँ कोई सुनता ही नहीं

और बहुत शोर मचाया भी नहीं जा सकता

दिल छुपाया किसी तितली के परों के नीचे

ये छुपाना तो छुपाया भी नहीं जा सकता

रात ने गीत सुनाया था किसी सुब्ह का गीत

गीत ऐसा कहीं गाया भी नहीं जा सकता

इक नया रंग उड़ाया है इन आँखों से 'अता'

रंग रंगों में मिलाया भी नहीं जा सकता

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