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इक अश्क बहा होगा - अहमद अता कविता - Darsaal

इक अश्क बहा होगा

इक अश्क बहा होगा

इक शेर हुआ होगा

चुप-चाप पड़े हैं हम

दिल राख हुआ होगा

इक ख़्वाब सहारा था

वो टूट गया होगा

दिल ने तो उन आँखों पर

इल्ज़ाम धरा होगा

है इश्क़ तो है हम-केश

दिल में कोई था होगा

क्या नूर था पानी में

आँखों से बहा होगा

फिर यार नहीं आए

फिर जाम धरा होगा

इक शोला फ़ुज़ूँ हो कर

जलता भी रहा होगा

शब ख़्वाब में आया वो

क्या क्या न हुआ होगा

तासीर कहाँ सच में

कुछ झूट कहा होगा

इस दिल के ख़राबे में

इक शहर बसा होगा

मुट्ठी में है दिल कैसे

रस्ते में मिला होगा

कहने की नहीं बातें

बातों से भी क्या होगा

इक ख़्वाब-ए-तमन्ना ने

बर्बाद किया होगा

वो सोख़्ता-सर था कौन

होगा तो 'अता' होगा

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