दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है
दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है
ये अस्ल में कोई तीसरा है
तुझ बिन ये मिरा वजूद क्या है
इक पेड़ है और खोखला है
इक चाप सुनाई दे रही है
दरवाज़े से वो पलट गया है
वो एक दिन इंतिज़ार का दिन
फिर ज़िंदगी भर वो दिन रहा है
ताबीर बताई जा चुकी है
अब आँख को ख़्वाब देखना है
बस धुँद निगल चुकी है ये रात
नज़्ज़ारा तमाम हो चुका है
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