Khawab Poetry of Ahmad Ata

Khawab Poetry of Ahmad Ata
नामअहमद अता
अंग्रेज़ी नामAhmad Ata

ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ

ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'

ताबीर बताई जा चुकी है

किसी को ख़्वाब में अक्सर पुकारते हैं हम

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं

सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें

मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है

ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे

कल ख़्वाब में इक परी मिली थी

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से

हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं

इक रात मैं सो नहीं सका था

इक अश्क बहा होगा

दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है

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