ये अलग बात कि तज्दीद-ए-तअल्लुक़ न हुआ
पर उसे भूलना चाहूँ तो ज़माने लग जाएँ
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(979) Peoples Rate This
अजब ठहराव पैदा हो रहा है रोज़ ओ शब में
अना मुँह आँसुओं से धो रही है
किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी
हम तिरे इश्क़ में कुछ ऐसे ठिकाने लग जाएँ
जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी
सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से
बहुत बईद न था मसअलों का हल होना
चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार
वो मिरी जुराअत-ए-कमयाब से ना-वाक़िफ़ हैं
दे के वो सारे इख़्तियार मुझे
तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए
अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं