किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी
ज़माने भर में शोहरत हो रही है
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए
अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं
बहुत बईद न था मसअलों का हल होना
चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार
हम तिरे इश्क़ में कुछ ऐसे ठिकाने लग जाएँ
वो मिरी जुराअत-ए-कमयाब से ना-वाक़िफ़ हैं
ज़मीं वालों की बस्ती में सुकूनत चाहती है
गए दिनों की रक़ाबत को वो भुला न सके
दे के वो सारे इख़्तियार मुझे
लगता है कि इस दिल में कोई क़ैद है 'अश्फ़ाक़'