फ़ासले ये सिमट नहीं सकते
अब परायों में कर शुमार मुझे
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लगता है कि इस दिल में कोई क़ैद है 'अश्फ़ाक़'
चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार
बहुत बईद न था मसअलों का हल होना
जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी
गए दिनों की रक़ाबत को वो भुला न सके
अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं
सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से
अना मुँह आँसुओं से धो रही है
हम तिरे इश्क़ में कुछ ऐसे ठिकाने लग जाएँ
तुम जो आ जाओ ग़म धुआँ हो जाए