रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द
रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द
याद आई बहुत उस की जाने के बा'द
मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं
वो नज़र आया जब इक ज़माने के बा'द
रूह परवर था इस का ये तर्ज़-ए-अमल
रूठ जाना दोबारा मनाने के बा'द
दिल को दिल से मिलाती है ये दिल-लगी
उस का होना पशेमाँ सताने के बा'द
तल्ख़-ओ-शीरीं है रूदाद-ए-दिल-बस्तगी
मुन्कशिफ़ ये हुआ आज़माने के बा'द
शख़्सियत का मिरी बन गया एक जुज़
मेरे क़ल्ब-ओ-जिगर में समाने के बा'द
है ये 'बर्क़ी' हसीनों की फ़ितरत का जुज़
वा'दा कर के न आना बुलाने के बा'द
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