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गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ - अहमद अली बर्क़ी आज़मी कविता - Darsaal

गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ

गुल-बदन गुल-एज़ार आ जाओ

जा रही है बहार आ जाओ

है अगर मुझ से प्यार आ जाओ

है फ़ज़ा साज़-गार आ जाओ

दीदा-ओ-दिल हैं फ़र्श-ए-राह मिरे

हमा-तन इंतिज़ार आ जाओ

छूट जाए कहीं न दामन-ए-सब्र

न करो बे-क़रार आ जाओ

आ के चाहो तो फिर चले जाना

ब-ख़ुदा एक बार आ जाओ

जैसे पहले मिला था मैं तुम से

तुम भी दीवाना-वार आ जाओ

तुम सताओगे कितना बर्क़ी को

हो अगर ग़म-गुसार आ जाओ

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