न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है
न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है
बशर-नवाज़ न हो जो वो आदमी क्या है
ज़माना-साज़ हैं जो वो हैं मस्लहत-अंदेश
जो हो ख़ुलूस से आरी वो दोस्ती क्या है
पस-अज़-वफ़ात न लें जिस का नाम उस के अज़ीज़
तवंगरी है अगर ये तो मुफ़्लिसी क्या है
करो न दस्त-दराज़ी ख़ुदा के बंदों पर
है नाम उस का शुजाअ'त तो बुज़दिली क्या है
हक़ीक़ी दोस्ती वो है हो जिस में जोश-ओ-ख़रोश
नशात-ए-रूह न हो जिस में ख़ुश-दिली क्या है
अज़ीज़-तर हैं मुझे ख़ुद से भी हसन-चिश्ती
बताऊँ आप को क्या बंदा-परवरी क्या है
न हो जो क़ारी-ओ-सामे' पे कुछ असर-अंदाज़
फ़रेब महज़ है 'बर्क़ी' वो शाइ'री क्या है
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