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उर्दू की शोहरा-ए-आफ़ाक़ वेब-साइट रेख़्ता की इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात पर मंज़ूम तअस्सुरात - अहमद अली बर्क़ी आज़मी कविता - Darsaal

उर्दू की शोहरा-ए-आफ़ाक़ वेब-साइट रेख़्ता की इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात पर मंज़ूम तअस्सुरात

रेख़्ता जिस का बड़ा नाम है क्या अर्ज़ करूँ

ये हमारे लिए इनआ'म है क्या अर्ज़ करूँ

फ़ाल नेक इस का है उर्दू के लिए अपना वजूद

जिस का फ़ैज़ान-ए-नज़र आम है क्या अर्ज़ करूँ

आप ख़ुद देख लें कहने पे न जाएँ मेरे

वो भी इस में है जो गुमनाम है क्या अर्ज़ करूँ

मेरा मजमूआ-ए-अशआर है इस की ज़ीनत

बादा-ए-शौक़ का ये जाम है क्या अर्ज़ करूँ

अपनी मीरास-ए-अदब करते हैं कैसे महफ़ूज़

इस का सब के लिए पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ

किसी मुस्लिम को न दी इस की ख़ुदा ने तौफ़ीक़

आप भी देख लें क्या काम है क्या अर्ज़ करूँ

ये कुतुब-ख़ाना-ए-मारूफ़ अदब का 'बर्क़ी'

ऐसी इक जल्वा-गह-ए-आम है क्या अर्ज़ करूँ

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