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इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है - अहमद अली बर्क़ी आज़मी कविता - Darsaal

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

इस के घर से मेरे घर तक एक कहानी बीच में है

मेरी उस की राहगुज़र तक एक कहानी बीच में है

चप्पा चप्पा उस की गली का रहा है मेरे ज़ेर-ए-क़दम

जोश-ए-जुनूँ से अज़्म-ए-सफ़र तक एक कहानी बीच में है

ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार किसी का है मेरा मौज़ू-ए-सुख़न

तारीकी से नूर-ए-नज़र तक एक कहानी बीच में है

ख़ून-ए-जिगर शामिल है मेरा इस गुलज़ार की रौनक़ में

सेहन-ए-चमन से बर्ग ओ शजर तक एक कहानी बीच में है

कौन-ओ-मकाँ की हर शय में हैं फ़ितरत के असरार-ओ-रुमूज़

बहर-ओ-बर से शम्स-ओ-क़मर तक एक कहानी बीच में है

माल भी अक्सर हो जाता है जान का लोगों की जंजाल

बत्न-ए-सदफ से लाल-ओ-गुहर तक एक कहानी बीच में है

ज़िद न करो तुम सुन न सकोगे 'बर्क़ी' का ये सोज़-ए-दरूँ

तीर-ए-नज़र से ज़ख़्म-ए-जिगर तक एक कहानी बीच में है

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