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अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-आश्ती हो जैसे बीमारी का नाम - अहमद अली बर्क़ी आज़मी कविता - Darsaal

अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-आश्ती हो जैसे बीमारी का नाम

अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-आश्ती हो जैसे बीमारी का नाम

है सियासत अहद-ए-नौ में एक अय्यारी का नाम

इन का ज़ाहिर और बातिन देख कर ऐसा लगा

पारसाई जैसे हो शायद रिया-कारी का नाम

जो ज़माना साज़ हैं, हैं सब के मंज़ूर-ए-नज़र

है तग़ज़्ज़ुल में तरन्नुम आज फ़नकारी का नाम

गर्दिश-ए-हालात से है बंद जिन का नातिक़ा

वो ज़बान-ए-हाल से लेते हैं बेकारी का नाम

है गिरानी का वो आलम अल-अमान ओ अल-हफ़ीज़

डरते हैं लेते हुए अब सब ख़रीदारी का नाम

शोख़ी-ए-गुफ़्तार में कह जाते हैं वो कुछ से कुछ

दोस्ती इन की नज़र में है दिल-आज़ारी का नाम

पुर-मसर्रत ज़िंदगी है आज कल ख़्वाब-ओ-ख़याल

है ज़बाँ पर इन दिनों सब की अज़ा-दारी का नाम

क्या कुशूद-ए-कार की 'बर्क़ी' कोई सूरत नहीं

सब के है विर्द-ए-ज़बाँ अब सिर्फ़ दुश्वारी का नाम

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