पामाल कर के पूछते हैं किस अदा से वो
इस दिल में आग थी मिरे तलवे झुलस गए
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मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला
मिलना न मिलना ये तो मुक़द्दर की बात है
जान देते ही बनी इश्क़ के दीवाने से
उर्यां ही रहे लाश ग़रीब-उल-वतनी में
लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया
मैं ख़ुदी में मुब्तिला ख़ुद को मिटाने के लिए
जब्र को इख़्तियार कौन करे
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है
जिस ने तुझे ख़ल्वत में भी तन्हा नहीं देखा