किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह
ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता
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जब्र को इख़्तियार कौन करे
उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला
अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली
शाइर-ए-रंगीं फ़साना हो गया
रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई
लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या
इस लिए कहते थे देखा मुँह लगाने का मज़ा
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
क्या ख़बर थी राज़-ए-दिल अपना अयाँ हो जाएगा
मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं