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लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया - आग़ा शाएर क़ज़लबाश कविता - Darsaal

लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया

लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया

जिस ने इस दिल को हथेली का फफूला कर दिया

देखना मग़रिब की जानिब ये शफ़क़ का फूलना

डूबते सूरज ने सोने में सुहागा कर दिया

ज़िंदगी और मौत में इक उम्र से थी कशमकश

वक़्त पर दो हिचकियों ने पाक झगड़ा कर दिया

इक शरारा सा क़रीब-ए-शम्अ जा कर मिल गया

आतिश-ए-परवाना ने शोले को दूना कर दिया

बुलबुल-ए-तस्वीर हूँ अब बोलना है नागवार

तेरी इस हंगामा आराई ने चुपका कर दिया

इस को कहते हैं लगी परवाने जल बुझ डूब मर

रोते रोते शम्अ ने आख़िर सवेरा कर दिया

दे दिया आँखें लड़ा कर इस परी-पैकर ने जाम

मैं नशे में चूर था ही और अंधा कर दिया

क्या गिरामी हस्तियाँ हैं हज़रत-ए-'उस्मान'-ओ-'शाद'

'शाइर' इन दोनों ने दुनिया में उजाला कर दिया

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