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दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई - आग़ा शाएर क़ज़लबाश कविता - Darsaal

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई

अब क्या है वो उतर गई नद्दी चढ़ी हुई

तुम जान दे के लेते हो ये भी नई हुई

लेते नहीं सख़ी तो कोई चीज़ दी हुई

इस टूटे फूटे दिल को न छेड़ो परे हटो

क्या कर रहे हो आग है इस में दबी हुई

लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या

इक बात है कही हुई इक बे-कही हुई

ख़ूँ-रेज़ जिस क़दर हैं वो रहते हैं सर-निगूँ

ख़ंजर हुआ कटार हुई या छुरी हुई

'शाइर' ख़ुदा के वास्ते तौबा का क्या क़ुसूर

है किस के मुँह से फिर ये सुबूही लगी हुई

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