ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
वो बंद-ओ-बस्त है कि हवा का गुज़र नहीं
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आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
तू नहीं मिलती तो हम भी तुझ को मिलने के नहीं
उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए
आग लगा दी पहले गुलों ने बाग़ में वो शादाबी की
ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे