कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
मँगा कर रख दिया इक शीशा चकनाचूर पहलू में
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कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा
वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली
मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है
तेज़ कब तक होगी कब तक बाढ़ रक्खी जाएगी
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया
परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं
घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
दुनिया जो न मैं चंद नफ़स के लिए लेता
जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ