घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
आधी छुटने की हुई तदबीर आधी रह गई
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क़रीब-ए-मर्ग हूँ लिल्लाह आईना रख दो
हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में
तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं
इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
सलफ़ से लोग उन पे मर रहे हैं हमेशा जानें लिया करेंगे
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
रहा करते हैं यूँ उश्शाक़ तेरी याद ओ हसरत में
बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के सदमे से हिल रहा है
दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ
दिल को लटका लिया है गेसू में
तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए
फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना