Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_6899dab025c8badd54b3d0e48025843f, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं - आग़ा हज्जू शरफ़ कविता - Darsaal

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आँखें हैं तर तो हों मिरा दामन तो तर नहीं

उम्मीद-ए-वस्ल से भी तो सदमा न कम हुआ

क्या दर्द जाएगा जो दवा का असर नहीं

दिन को भी दाग़-ए-दिल की न कम होगी रौशनी

ये लौ ही और है ये चराग़-ए-सहर नहीं

तन्हा चलें हैं मारका-ए-इश्क़ झेलने

उन की तरफ़ ख़ुदाई है कोई इधर नहीं

ख़ाली सफ़ाई-क़ल्ब से बेहतर है दाग़-ए-इश्क़

क्या ऐब है कि जिस के मुक़ाबिल हुनर नहीं

क़ातिल की राह देख ले दम भर न ज़हर खा

ऐ दिल क़ज़ा को आने दे बे-मौत मर नहीं

क्यूँकर यहाँ न एक ही करवट पड़ा रहूँ

हू का मक़ाम गोर की मंज़िल है घर नहीं

रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल

बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं

आँखें झपक रही हैं मिरी बर्क़-ए-हुस्न से

पेश-ए-नज़र हो तुम मुझे ताब-ए-नज़र नहीं

यारो बताओ किस तरफ़ आँखें बिछाऊँ मैं

उस शोख़ की किधर को है आमद किधर नहीं

बंदा-नवाज़ सब हैं रुकू ओ सुजूद में

ताअत से ग़ाफ़िल आप की कोई बशर नहीं

परियों के पास जाऊँ मैं क्यूँ दिल को बेचने

सौदा जो मोल लूँ ये मुझे दर्द-ए-सर नहीं

दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार से दोनों हैं बे-क़रार

क़ाबू में दिल नहीं मुतहम्मिल जिगर नहीं

राह-ए-अदम में साथ रहेगी तिरी हवस

पर्वा नहीं न हो जो कोई हम-सफ़र नहीं

ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई

वो बंद-ओ-बस्त है कि हवा का गुज़र नहीं

उठवा के अपनी बज़्म से दिल को मिरे न तोड़

पहलू में दे के जा मुझे बर्बाद कर नहीं

हस्ती किधर है आलम-ए-अर्वाह है कहाँ

ग़फ़लत-ज़दा हूँ मुझ को कहीं की ख़बर नहीं

ज़ंजीर उतर गई तिरा दीवाना मर गया

सन्नाटा क़ैद-ख़ाने में है शोर-ओ-शर नहीं

चंद्रा के मुझ को बोले वो आख़िर जो शब हुई

फ़क़ हो गया है रंग किसी का सहर नहीं

बरपा है हश्र-ओ-नश्र जो रफ़्तार-ए-यार से

ये कौन सा चलन है क़यामत अगर नहीं

दुर्र-ए-नजफ़ तो जिस्म है उस नाज़नीन का

मू-ए-नजफ़ में बाल पड़ा है कमर नहीं

दीदार का लगा के मैं आया हूँ आसरा

उम्मीद-वार हूँ मुझे मायूस कर नहीं

यारो सितम हुआ हुई आख़िर शब-ए-विसाल

सीना 'शरफ़' ये कूट रहे हैं गजर नहीं

(907) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin In Hindi By Famous Poet Agha Hajju Sharaf. Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin is written by Agha Hajju Sharaf. Complete Poem Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin in Hindi by Agha Hajju Sharaf. Download free Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin Poem for Youth in PDF. Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin is a Poem on Inspiration for young students. Share Rulwa Ke Mujhko Yar Gunahgar Kar Nahin with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.