रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं
हवस गुलज़ार की मिस्ल-ए-अनादिल हम भी रखते थे
लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे
हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
मौसम-ए-गुल में जो घिर घिर के घटाएँ आईं
ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
जवानी आई मुराद पर जब उमंग जाती रही बशर की
फ़स्ल-ए-गुल में है इरादा सू-ए-सहरा अपना
देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
इश्क़-बाज़ों की कहीं दुनिया में शुनवाई नहीं