आग़ा हज्जू शरफ़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आग़ा हज्जू शरफ़
नाम | आग़ा हज्जू शरफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Agha Hajju Sharaf |
तू नहीं मिलती तो हम भी तुझ को मिलने के नहीं
तेज़ कब तक होगी कब तक बाढ़ रक्खी जाएगी
शाख़-ए-गुल झूम के गुलज़ार में सीधी जो हुई
क़रीब-ए-मर्ग हूँ लिल्लाह आईना रख दो
नहीं करते वो बातें आलम-ए-रूया में भी हम से
मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें
क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा
जोखम ऐ मर्दुम-ए-दीदा है समझ के रोना
जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था
इश्क़-बाज़ों की कहीं दुनिया में शुनवाई नहीं
इश्क़ हो जाएगा मेरी दास्तान-ए-इश्क़ से
हमेशा शेफ़्ता रखती है अपने हुस्न-ए-क़ुदरत का
घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई
दुनिया जो न मैं चंद नफ़स के लिए लेता
दुखा देते हो तुम दिल को तो बढ़ जाता है दिल मेरा
दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
दिल में आमद आमद उस पर्दा-नशीं की जब सुनी
देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
आमद आमद है तिरे शहर में किस वहशी की
वो रंगत तू ने ऐ गुल-रू निकाली
उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए
तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा
तिरछी नज़र न हो तरफ़-ए-दिल तो क्या करूँ
तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए