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नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है - अफ़ज़ल पेशावरी कविता - Darsaal

नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है

नौजवानी में अजब दिल की लगी होती है

ग़म के सहने में भी इंसाँ को ख़ुशी होती है

प्यार जब प्यार की मंज़िल पे पहुँच जाता है

हँसते चेहरों के भी आँखों में नमी होती है

पास रहते हैं तो दिल महव-ए-तरब रहता है

दूर होते हैं तो महसूस कमी होती है

जब भी होता है गुमाँ उन से कहीं मिलने का

दिल के अरमानों में इक धूम मची होती है

नामा-बर से न कहूँ बात तो फिर फ़ाएदा क्या

और कह दूँ तो तिरी पर्दा-दरी होती है

जब भी तो मेरे तसव्वुर में मकीं होता है

दिल की दुनिया तिरे जल्वों से सजी होती है

कज-अदाई हो सितम हो कि हों अल्ताफ़-ओ-करम

अपने महबूब की हर चीज़ भली होती है

क्या बताऊँ मैं तिरे जिस्म की रंगीनी को

जैसे साग़र में मय-ए-नाब ढली होती है

उन के आने से सुकूँ आने लगा है 'अफ़ज़ल'

आज कुछ दर्द में महसूस कमी होती है

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